4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी। मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी। मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी। नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।। ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार। कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार। यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते। मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।। ©Hariram Regar ************************************************ कोई जीने को खाता है, कोई जीता है खाने को। कोई कौड़ी बचाता है, कोई खर्चे, दिखाने को। अमीरी और गरीबी में यहाँ बस फ़र्क़ इतना है, कोई दौड़े कमाने को, कोई दौड़े पचाने को।। ©Hariram
चाहत के समंदर में वो डूबती कश्ती तूने उससे चुल्लू भर पानी हटाया नहीं। कश्ती और पानी के रिश्ते को शायद, तुम समझ पायी नहीं या मैं समझ पाया नहीं। मैं हर बार लोटा भर बाहर उड़ेलता और तुम हो कि कश्ती को छेदती जा रही। छेदों से कश्ती छलनी होती जा रही अब मैं थक गया हूँ, इस कश्ती को बचाते बचाते। 11:00 AM १२/०९/२०१९