कब तक सड़ूँगा पिंजरे में, अब जीऊं कैसे इन रंजिशों में। अब ऊब गया हूँ जी करके , दुनिया की इन सब बंदिशों में। मैं तो हवाओ का झौंका था , जाता था हर गांव - शहर। यह थी पहले की हक़ीकत, बदल गयी अब ख्वाहिशों में। तहस - नहस हुआ है, जन - धन इस जहान का। सब कुछ थम - सा गया है, इक विषाणु की गर्दिशों में। घर में बिस्तर थक गया है, बोले तू अब तो निकल। दर्द भरा है दिल में और बाहर पुलिस की मालिशों में। क्या हाल ? ज़रा उनसे भी पूँछो, जो हर दिन कमाते खाते थे। देशबन्दी चक्कर में अब भूखे सोते बिन पर्वरिशों में। हर शख़्स परेशाँ होता है , जब संकट आये दुनिया भर में। स्वार्थ सधा है इसके पीछे, कुछ लोगों की साज़िशों में। यह विषाणु रखे चाहत सिखाने की "मानव देह सब एक है"। पर मानव तो उलझा है , धर्म और जातिगत बंदिशों में। घर पर रहे, स्वस्थ रहे, ख़त्म हो ये महामारी अब। कोई भी भूखा ना मरे , 'हरिराम' कहे अपनी गुज़ारिशों में।
'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की, दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।3।