आत्महत्या क्या विषाद था तेरे मन में? क्यों लटक गया तू फंदे पर? जो औरों को कन्धा देता, क्यों आज है वो पर कंधे पर? क्या गिला रहा इस जीवन से? जो अकाल काल के गले मिला। जिसको नभ में था विचरण करना, क्यों बंद कक्ष-छत तले मिला? क्या इतना विशाल संकट था? जो जीकर ना सुलझा पाया। अरे! इतनी भी क्या शर्म-अकड़? जो अपनो को ना बतलाया। क्या जीवन से भारी कोई जीवन में ही आँधी आई? इन छुट-मुट संकट के चक्कर में मृत्यु ही क्यों मन भायी? हाँ हार गया हो भले मगर, हाँ कुछ ना मिला हो भले मगर, या जीत गया हो भले मगर, पर जीवन थोड़ी था हारा? अरे! हार जीत तो चलती रहती। इस हार से ही क्यों अँधियारा ?
उदास धरती माँ तेरे चेहरे पे झलकती थी खूब ख़ुशी , तू पहनती थी हरी साड़ी ख़ुशी ख़ुशी । आती थी तेरे तन से फूलों की बास । हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? आम अमरुद बरगद बबूल सब कहा गए ? तेरे सारे अंग आज शिथिल कैसे पड़ गए ? यहां पर आज किसने किया है वास ? हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? तेरे ऊंचे ऊंचे पर्वतों के सर आज कैसे झुक गए ? चलती हुई नदियों के कदम आज कैसे रुक गए ? आज इन सरोवरों को क्यों लगी है प्यास ? हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? पहले हवा में महकती थी सुमनों की सुगंध । इसमें आज फैली है प्लास्टिक थैलियों की दुर्गन्ध । कहाँ कर गए तेरे सारे सुमन प्रवास ? हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? कैसे टूटा है यह तेरा ओज़ोन कवच ? अब ये प्राणी कैसे पाएंगे बच ? जहाँ सूरज की गन्दी किरणों का फैला है त्रास। हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? तेरे ध्रुव खण्ड आज क्यों पिघल रहे ? समुद्री पानी के कदम भूमि पर क्यों चल रह