4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी। मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी। मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी। नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।। ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार। कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार। यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते। मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।। ©Hariram Regar ************************************************ कोई जीने को खाता है, कोई जीता है खाने को। कोई कौड़ी बचाता है, कोई खर्चे, दिखाने को। अमीरी और गरीबी में यहाँ बस फ़र्क़ इतना है, कोई दौड़े कमाने को, कोई दौड़े पचाने को।। ©Hariram
उदास धरती माँ तेरे चेहरे पे झलकती थी खूब ख़ुशी , तू पहनती थी हरी साड़ी ख़ुशी ख़ुशी । आती थी तेरे तन से फूलों की बास । हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? आम अमरुद बरगद बबूल सब कहा गए ? तेरे सारे अंग आज शिथिल कैसे पड़ गए ? यहां पर आज किसने किया है वास ? हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? तेरे ऊंचे ऊंचे पर्वतों के सर आज कैसे झुक गए ? चलती हुई नदियों के कदम आज कैसे रुक गए ? आज इन सरोवरों को क्यों लगी है प्यास ? हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? पहले हवा में महकती थी सुमनों की सुगंध । इसमें आज फैली है प्लास्टिक थैलियों की दुर्गन्ध । कहाँ कर गए तेरे सारे सुमन प्रवास ? हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? कैसे टूटा है यह तेरा ओज़ोन कवच ? अब ये प्राणी कैसे पाएंगे बच ? जहाँ सूरज की गन्दी किरणों का फैला है त्रास। हे धरती माँ ! आज क्यों है तू इतनी उदास ? तेरे ध्रुव खण्ड आज क्यों पिघल रहे ? समुद्री पानी के कदम भूमि पर क्यों चल रह