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Showing posts from August, 2024

नारी के हौसले और न्याय की पुकार | Hindi Kavita/Poem | By Hariram Regar

  नारी के हौसले और न्याय की पुकार: एक संवेदनशील कविता | Hindi Kavita/Poem | By Hariram Regar Tags: हिंदी कविता, नारी सशक्तिकरण, महिला अधिकार, न्याय की पुकार, संवेदनशील कविता, कोलकाता दुष्कर्म और हत्या कांड, निर्भया कांड आज के समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों और उनकी हिम्मत को सलाम करती हुई हरिराम रेगर की यह कविता आपके सामने प्रस्तुत है। यह कविता न केवल महिलाओं की पीड़ा और संघर्ष को व्यक्त करती है, बल्कि उनके अंदर छिपी हुई शक्ति और साहस को भी उजागर करती है। कई बार समाज ने महिलाओं की आवाज़ को दबाया है, जैसे हाल ही में कोलकाता में हुई दुष्कर्म और हत्या की घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। यह घटना न सिर्फ महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि न्याय की प्रक्रिया पर भी गहरा प्रभाव डालती है। याद कीजिए निर्भया कांड को, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। उस घटना ने यह साबित किया कि समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएँ कितनी भयावह हो रही हैं। इन घटनाओं ने न्याय की मांग को और भी प्रबल किया और समाज में बदलाव की आवश्यकता को उजागर किया। कविता: लेखक: हरिराम रेगर वो चली थी

जिंदगी का तमाशा मत बना: एक महत्वपूर्ण संदेश | Hindi Kavita / Poem | By Hariram Regar

  जिंदगी का तमाशा मत बना: एक महत्वपूर्ण संदेश | Hindi Kavita / Poem | By Hariram Regar जिंदगी का तमाशा मत बना, अपनी कमजोरियाँ बताकर। ये दुनिया है साहब! ये मरहम नहीं, मिर्ची लगाती है। जीवन के हर मोड़ पर हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियाँ हमें मजबूत बनाती हैं, परन्तु क्या होता है जब हम अपनी कमजोरियों को दूसरों के सामने प्रकट कर देते हैं? हरिराम रेगर की ये कविता इसी विचार पर आधारित है, जिसमें जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहराई से विचार किया गया है। कविता का अर्थ और संदेश इस कविता का पहला भाग, "जिंदगी का तमाशा मत बना, अपनी कमजोरियाँ बताकर," हमें यह सिखाता है कि जीवन को तमाशा नहीं बनाना चाहिए। हमारी कमजोरियाँ हमारी निजी संपत्ति होती हैं, जिन्हें हर किसी के सामने उजागर नहीं करना चाहिए। यह विचार हमें खुद पर विश्वास रखने और अपने संघर्षों को निजी रखने की प्रेरणा देता है। दूसरा भाग, "ये दुनिया है साहब! ये मरहम नहीं, मिर्ची लगाती है," एक सच्चाई को उजागर करता है। दुनिया में हर कोई हमारे दर्द को समझने और मदद करने के लिए नहीं होता। बल्कि, कुछ लोग हमारी कमजोरियों

राखी की चुनौती | सुभद्राकुमारी चौहान

सुभद्राकुमारी चौहान की कविता- राखी की चुनौती   बहिन आज फूली समाती न मन में। तड़ित आज फूली समाती न घन में॥ घटा है न झूली समाती गगन में। लता आज फूली समाती न बन में॥ कहीं राखियाँ हैं, चमक है कहीं पर, कहीं बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं। ये आई है राखी, सुहाई है पूनो, बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं॥ मैं हूँ बहिन किंतु भाई नहीं है। है राखी सजी पर कलाई नहीं है॥ है भादों, घटा किंतु छाई नहीं है। नहीं है ख़ुशी, पर रुलाई नहीं है॥ मेरा बंधु माँ की पुकारों को सुनकर- के तैयार हो जेलख़ाने गया है। छिनी है जो स्वाधीनता माँ की उसको, वह जालिम के घर में से लाने गया है॥ मुझे गर्व है किंतु राखी है सूनी, वह होता, ख़ुशी तो क्या होती न दूनी? हम मंगल मनावें, वह तपता है धूनी। है घायल हृदय, दर्द उठता है ख़ूनी॥ है आती मुझे याद चित्तौर गढ़ की, धधकती है दिल में वह जौहर की ज्वाला। है माता-बहिन रो के उसको बुझाती, कहो भाई, तुमको भी है कुछ कसाला? है, तो बढ़े हाथ, राखी पड़ी है। रेशम-सी कोमल नहीं यह कड़ी है॥ अजी देखो लोहे की यह हथकड़ी है। इसी प्रण को लेकर बहिन यह खड़ी है॥ आते हो भाई ? पुन पूछती हूँ- कि माता के बंधन की है लाज त

राम (Ram) | By Hariram Regar

हम राम राम कहते है लेकिन राम को सच मे जाने क्या? राम को सब माने है लेकिन राम की एक भी माने क्या? --- Hariram Regar *************** राम को समझने की एक नई दिशा हम राम राम कहते हैं, लेकिन क्या सच में राम को जानते हैं? यह सवाल शायद हर उस व्यक्ति के मन में उठता होगा, जो भगवान राम की भक्ति करता है। राम का नाम सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, एक मार्गदर्शक है, जिसे समझना और अपनाना ज़रूरी है। राम के नाम का जाप करने से हमारे मन को शांति मिलती है, लेकिन क्या हम राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारते हैं? क्या हम राम की शिक्षाओं को मानते हैं, जिनमें धर्म, सत्य, और कर्तव्य पालन के साथ जीने की बात कही गई है? राम को माने बिना राम को मानने का क्या अर्थ है? राम का नाम और राम का आदर्श राम का नाम लेते ही एक पवित्रता का आभास होता है। उनके जीवन का हर पहलू हमें कुछ न कुछ सिखाता है। श्रीराम ने हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया, चाहे कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न आईं। उन्होंने अपने परिवार, समाज, और देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए धर्म का पालन किया। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या हम

अमर जवान | by Hariram Regar

अमर जवान लाखों ने है लहूँ बहाया , लाखों ने है डंडा खाया , अंग्रेज़ों के उस शासन को जड़-मूल से काट भगाया सबकी एक अभिलाषा थी भारत आज़ाद परिंदा हो तुम मरे नहीं हो अमर जवानों , तुम तो दिलों में ज़िंदा हो।।1।। किसी ने गोली खाई थी तो किसी को फांसी लगायी कटा दिए थे सिर अपने भारत की शान बढ़ायी बड़ी अच्छी थी सोच तुम्हारी "चाहे हमारी निंदा हो " तुम मरे नहीं हो अमर जवानों , तुम तो दिलों में ज़िंदा हो।।2।। अपनाई स्वदेशी चीजें विदेशी चीज़ों में आग लगायी छोड़ दिये सबने दफ्तर सारे असहयोग की राह अपनायी साथ दिया था दिल से तुमने चाहे हिन्दू चाहे मुस्लिम बन्दा हो तुम मरे नहीं हो अमर जवानों , तुम तो दिलों में ज़िंदा हो।।3।।    --- Hariram Regar ********************* अमर जवान: एक समर्पण भारत की आजादी का इतिहास शौर्य, बलिदान और वीरता की अनगिनत कहानियों से भरा पड़ा है। उन सभी वीरों को, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर इस देश को स्वतंत्रता दिलाई, हम हमेशा नमन करते हैं। ऐसे ही वीरों की स्मृति को समर्पित एक कविता "अमर जवान" है, जिसमें उनके बलिदान को शब्दों में ढालने की कोशिश की गई है। लाखों ने है

सरफ़रोशी की तमन्ना | By राम प्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर, और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न, जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रह

बिककर छपते है अख़बार | Bikakar chhapate hai Akhabaar | By Hariram Regar

© जिनसे जनता जानती जग को।  ये अपनी अश्मिता आँकते नभ को।  लिखी छपी सब सच मिलती थी, खबर बड़ी या छोटी, सब को।  पर इसमें ऐसी बात कहाँ अब? इसने छोड़ दिया है वो व्यवहार।  जो पहले छपकर बिकते थे, अब बिककर छपते है अख़बार।  चार खम्भों का लोकतन्त्र, अखण्ड स्वराज हो यही मंत्र।  शनै शनै सब शीर्ण हो रहे, चुनाव, सूचना,न्याय, राजतंत्र।  यहाँ खुद का खुद पर शासन हो, अब बचा कहाँ ऐसा किरदार।   जो पहले छपकर बिकते थे, अब बिककर छपते है अख़बार।  नफ़रत का बाज़ार बसा है।  सत्ता ने जो कान कसा है।  इतना ज़हर भरा है इसमें, जैसे इनको नाग डसा है।  कितनी बातें करते है ये, जिनका नहीं निकलता सार।  जो पहले छपकर बिकते थे, अब बिककर छपते है अख़बार।  बने हुए है कठपुतली ये।  पर के इशारों पर नाचे।  सच को झूठ बताते है ये, झूठ, बताते है साँचे।  बीज बो रहे नफ़रत के, और छीन रहे है मूल अधिकार।  जो पहले छपकर बिकते थे, अब बिककर छपते है अख़बार।  जो प्रमुख मुद्दे है जनता के, उनकी दूर दूर तक बात नहीं।  ये सच को सच में कह देंगे। वो इनकी अब औक़ात नहीं।  अब सच का तो सूर्यास्त हो गया।  और झूठ बना है शहरयार।  जो पहले छपकर बिकते थे, अब बिककर छपते है अख़

ख़ास अभी तक रचा नहीं | Khaas abhi tk rachaa nhi | By Hariram Regar

 © कुछ दर्द मिले, कुछ ग़म खाए।  कुछ दुःख के बादल मण्डराएं।  कुछ रहा तिमिर, कुछ कटी निशाएँ।  और घूम रहा हूँ दसों दिशाएँ।  कुछ गीत ग़जल के सिवा मेरे अब झोली में कुछ बचा नहीं।  मुझे रचना था कुछ खास मग़र  वो ख़ास अभी तक रचा नहीं।  कुछ रंज लिखे, कुछ तंज़ लिखे , कुछ लिखे भाव अपने मन के।  कुछ नैन मिले, कुछ इश्क हुआ कुछ भाव मिले थे तन मन के।  ये लिखते लिखते कलम घिसी  अब कागज़ कौरा बचा नहीं।  मुझे रचना था कुछ खास मग़र  वो ख़ास अभी तक रचा नहीं। --- Hariram Regar “ख़ास अभी तक रचा नहीं” – एक हिंदी कविता की आत्ममंथन हिंदी कविता का संसार अत्यंत विविध और संवेदनशील होता है। इसमें एक कवि की भावनाएँ और अनुभव शब्दों के माध्यम से जीवन की गहराई को व्यक्त करते हैं। हिंदी कविताओं की दुनिया में, कवि हरिराम रेगर की रचनाएँ विशेष स्थान रखती हैं। उनकी कविता “ख़ास अभी तक रचा नहीं” उसी भावनात्मक गहराई का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस हिंदी कविता में, कवि ने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त किया है। यह कविता दर्द, ग़म, और दुःख की अनुभूतियों को सुंदरता के साथ बुनती है। यह हिंदी कविता न केवल व्यक्तिगत भावनाओं को व्यक्त करती है,

मेरी माँ (गीत) | meri maa | Geet | By Hariram Regar

माँ: एक असीम प्रेम की मूरत जगत में माँ का स्थान सबसे ऊँचा है। वह एक ऐसी मूरत है, जो अपने बच्चों के लिए हर दुःख और तकलीफ का सामना करती है, और अपनी ममता से हर समस्या को हल्का बना देती है। इस कविता में माँ की उसी ममता, करुणा और अटूट प्रेम को दर्शाया गया है, जो हर किसी के जीवन में एक अद्वितीय स्थान रखती है। कविता जगत में है बस माँ, तेरा सहारा व तेरी दुआ। भगवन भी यहाँ पे बनाके तुझे, क्या निठल्ला हुआ। जब भूख लागे, माँ ! तू याद आये। यूँ अपना निवाला, तू मुझको खिलाये। तू भूख भी काटे, तू प्यास भी काटे। बिना तेरे, ना कोई, मेरा जहाँ। जगत में है बस माँ, तेरा सहारा व तेरी दुआ। जब चोट लागे, माँ तू याद आये। तू मेरे आँसू पे, आँसू बहाये। तू मरहम लगाती, माँ प्यार लुटाती। करुणा से तेरी, दर्द होता दफ़ा। जगत में है बस माँ, तेरा सहारा व तेरी दुआ। खुरापात करता, तू थप्पड़ लगाती। पापा के नाम की धमकी बताती। पापा जब डाँटें, लगाते है चाँटे। बचाती हो, तुम ही, पिता से मुझे। जगत में है बस माँ, तेरा सहारा व तेरी दुआ। --- Hariram Regar भावार्थ: जब हम छोटे होते हैं और भूख लगती है, तो माँ का वह प्यार से खाना खिलाना, हमें उ

काव्य रचना | Kavya Rachana | By Hariram Regar

© कागज़ लाओ, कलम लाओ, दवात लाओ। ख़यालो की एक बड़ी-सी बारात लाओ। दुल्हन की तरह सजा दो इन ख़यालो को। यूँ उथल पुथल मच जाए, ऐसी बात लाओ। कोई पूछेगा नहीं तुमको, अगर कचरा लिखोगे। कवि हो तुम तो, कवि के जज़्बात लाओ। तुम्हारी कल्पना हो परे उस आसमाँ से। रवि की आग भी बुझ जाए वो बरसात लाओ। तवायफ़ भी गुनगुनाए तेरे गीतों को। भिखारी भी गुनगुना दे, वो अनुपात लाओ। जग याद रखे तुमको यहाँ अरसों तक। अपनी लेखनी में तुम वही सौगात लाओ। बहुत अँधेरे जो देखें है जीवन में तो। अब सुखों की भी तो "हरि" बरसात लाओ। --- Hariram Regar ************************************************************ कविता:  काव्य रचना कविता की शुरुआत बेहद गहरी भावनाओं से होती है, जो कवि के भीतर उथल-पुथल मचाने वाले विचारों को उजागर करती है। "कागज़ लाओ, कलम लाओ, दवात लाओ," ये शब्द इस बात का प्रतीक हैं कि कवि अपने भीतर के विचारों को शब्दों में ढालना चाहता है। ये कविता केवल कागज और कलम की नहीं है, बल्कि उन विचारों की है जो जीवन में प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। कवि के जज़्बात और लेखनी का महत्व कविता लिखना एक कला है, लेकिन उससे भी बढ

क्यों अँधकार में बैठे हो ? kyo andhakaar me baithe ho ? By Hariram Regar

  ©मुझको जो कहना था वो तो उस  दिन ही सब कह डाला।  अब तुझको भी कुछ कहना हो तो  जल्दी से तुम कह डालो।  कुछ कौड़ी जो है जेब में तेरे  क्या उस पर ही तुम ऐंठे हो ? कुछ बात करो कुछ निर्णय लो  क्यों अँधकार  में बैठे हो ? कुछ राग रहा हो और अगर  वो राग भी तुम अब कह डालो।  और आग भरी हो सीने में तो  उसको भी तुम बाहर निकालो।  क्यों रोज रोज ही खटपट हो  क्यों रोज रोज ही टें-टें  हो? कुछ बात करो कुछ निर्णय लो  क्यों अँधकार  में बैठे हो ? कब तक हाँकोगे उसको? इसकी समय अवधि भी निश्चित है? अरे हाय ! तुम्हारी बेशर्मी  मेरे गाँव में तो ये चर्चित है।  वो बने तुम्हारे आदर्शी  तुम बने उसके घुसपैठे हो।  कुछ बात करो कुछ निर्णय लो  क्यों अँधकार  में बैठे हो ? --- Hariram Regar ************************************* कभी-कभी जीवन में ऐसा समय आता है जब हमें सब कुछ साफ-साफ कह देना चाहिए। जैसे कि एक कविता कहती है: "मुझको जो कहना था वो तो   उस दिन ही सब कह डाला।   अब तुझको भी कुछ कहना हो तो   जल्दी से तुम कह डालो।" यह पंक्तियाँ हमें सिखाती हैं कि अगर हमारे मन में कोई बात है, तो उसे दबाने के बजाय खुलकर कह देना

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जय चित्तौड़(गीत)

'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की,  दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।3।

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी।  मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी।  मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी।  नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।।                                                                                                 ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार।  कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार।  यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते।  मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।।                                                                              ©Hariram Regar ************************************************ कोई जीने को खाता है, कोई जीता है खाने को। कोई कौड़ी बचाता है, कोई खर्चे, दिखाने को। अमीरी और गरीबी में यहाँ बस फ़र्क़ इतना है, कोई दौड़े कमाने को, कोई दौड़े पचाने को।।                                                                             ©Hariram

Self Respect || By Hariram Regar

स्वाभिमान(Self Respect)  जिस दिन तेरे हाथ में लाठी होगी। जिस दिन तेरी साँझ ढलेगी। वो दिन कितना प्यारा होगा? जिस दिन तू "हरि" से मिलेगी। ये लब्ज़ तेरे है, वचन तेरे है। इन वचन पे आँच न लाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला। मान नहीं खो पाऊँगा। जो तेरा मेरा यह रिश्ता है।  इसका तुझको कोई भान नहीं। मेरे गाँव से तेरा क्या नाता? इसका भी तुझको ध्यान नहीं। और तेरे गाँव में तेरा "सब कुछ" है। ये बात मैं कैसे पचाऊँगा? मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। ये इत्तिफ़ाक रहा या मक़सद था ?  इस ज्ञान का मैं मोहताज़ नहीं। मैं ज़मीं पे चलता मानव हूँ, तेरे जैसा अकड़बाज़ नहीं।  जिस घर में कोई मान न हो,  उस घर आँगन न जाऊँगा।  मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। कितने घूँट ज़हर के पीऊँ? कितने झूठ सहन कर जीऊँ? मैं सीना ठोक के चलने वाला  ये ज़मीर ना माने झुक के जीऊँ। अरे झुकने को सौ बार झुकूँ मैं। पर हर बार नहीं झुक पाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला मान नहीं खो पाऊँगा। --- Hariram Regar #SundayPoetry