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सरफ़रोशी की तमन्ना | By राम प्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

---राम प्रसाद बिस्मिल

********************

"सरफ़रोशी की तमन्ना" - स्वतंत्रता के लिए समर्पण की अनुगूंज

स्वतंत्रता संग्राम की कहानी केवल घटनाओं का एक सिलसिला नहीं है, बल्कि यह उन असंख्य भावनाओं और बलिदानों का प्रतिबिंब भी है, जो स्वतंत्रता के दीवानों ने अपनी मातृभूमि के लिए समर्पित किए। इस भावना को शब्दों में ढालने का कार्य उस समय के कवियों ने बखूबी निभाया। इसी श्रृंखला में क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की कविता "सरफ़रोशी की तमन्ना" अपनी अनूठी छाप छोड़ती है।

क्रांति की धधकती ज्वाला

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है..."

इन पंक्तियों में एक अद्भुत साहस और संकल्प की भावना झलकती है। यह कविता केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि यह उस ज्वाला की तरह है जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्षरत क्रांतिकारियों के हृदय में जल रही थी। बिस्मिल की इस कविता ने उन दिनों न जाने कितने वीरों को प्रेरित किया, जो आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार थे।

बलिदान की अदम्य इच्छा

"वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है..."

इस कविता के माध्यम से बिस्मिल ने देश के युवाओं को यह संदेश दिया कि समय आने पर वे अपने बलिदान से आसमान को भी झुका देंगे। यह कविता उनकी अमर देशभक्ति की मिसाल है, जो उस समय के क्रांतिकारियों के दिलों में गूंजती रही।

शहादत का जज्बा

"हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से..."

इन पंक्तियों में बिस्मिल ने यह स्पष्ट किया कि जिनके दिलों में जुनून हो, वे किसी भी ताकत के आगे नहीं झुकते। यह कविता अपने आप में क्रांतिकारियों के अदम्य साहस और बलिदान की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करती है।

मृत्यु का स्वागत

"हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम..."

इस कविता में मृत्यु का भय नहीं, बल्कि उसे गले लगाने की तैयारी है। बिस्मिल ने इस कविता में अपने और अपने साथी क्रांतिकारियों के दिलों की बात कही है, जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का संकल्प लिया था।

काव्य की अमरता

"सरफ़रोशी की तमन्ना" केवल एक कविता नहीं है, यह आज भी स्वतंत्रता संग्राम के उन वीरों की अमर गाथा है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। यह कविता हमें हमेशा याद दिलाती है कि हमारी आजादी कितने बलिदानों से मिली है और हमें इसे बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।

इस कविता की हर पंक्ति में बिस्मिल का आत्मबल, त्याग और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण दिखता है। यह कविता आज भी हमारे दिलों में वही जोश भर देती है, जो उस समय के क्रांतिकारियों ने महसूस किया था।

समाप्ति

इस कविता को पढ़ते ही ऐसा लगता है जैसे उस दौर में हम खुद भी शामिल हो जाते हैं। यह कविता हमें यह सिखाती है कि जब बात देश की हो, तो हर तरह का बलिदान देना चाहिए। बिस्मिल की यह कविता हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की लौ को और तेज कर देती है।

- Team HindiPoems.in

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