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Showing posts from April, 2022

हम स्वाभिमान संग जीते है || ham swabhimaan sang jeete hai || By Hariram Regar

  कफ़न बँधे है माथे पर।  चाप-तीर, असि-ढाल रखे है।  हम शेरों से भी भिड़ जाएँ।  शौक गज़ब के पाल रखे है।  अरि आँख उठाकर देखे हम पर  खून हमारी नस नस में खोले।  "हम स्वाभिमान संग जीते है"- इस मिट्टी का कण-कण बोले।  हम आन, बान और शान के ख़ातिर  अपनी जान भी सहज लुटाते है।  हम मर जाएँ, मिट जाएँ लेकिन, इज़्ज़त ना दाव लगाते है।   हम ज़ौहर करना सहज समझते, बजाय हम बैरी के हो लें।  "हम स्वाभिमान संग जीते है"- इस मिट्टी का कण-कण बोले।  अंगुल-बांस के मापन से  यहाँ "पृथ्वी" तीर चलाते है।  बरदाई का दोहा सुनकर  गोरी को मार गिराते है।  बक्षीश मिले ना जयचन्दों को  पग रिपुओं के डगमग डोले।  "हम स्वाभिमान संग जीते है"- इस मिट्टी का कण-कण बोले।  यहाँ राणा का भाला भारी है।  यहाँ मीरा की भक्ति न्यारी है।  माँ पन्ना का त्याग अमोल यहाँ।  यहाँ वीर जणे वो नारी है।  ना नसीब रहे भले घास की रोटी  पर राणा का ना मन डोले।  "हम स्वाभिमान संग जीते है"- इस मिट्टी का कण-कण बोले।  थकी नहीं हैं कलम "हरि" की राजस्थान का गौरव गाते-गाते।  एक से बढ़कर एक शूरमा  यहाँ इतिहास के पन्

Self Respect || By Hariram Regar

स्वाभिमान(Self Respect)  जिस दिन तेरे हाथ में लाठी होगी। जिस दिन तेरी साँझ ढलेगी। वो दिन कितना प्यारा होगा? जिस दिन तू "हरि" से मिलेगी। ये लब्ज़ तेरे है, वचन तेरे है। इन वचन पे आँच न लाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला। मान नहीं खो पाऊँगा। जो तेरा मेरा यह रिश्ता है।  इसका तुझको कोई भान नहीं। मेरे गाँव से तेरा क्या नाता? इसका भी तुझको ध्यान नहीं। और तेरे गाँव में तेरा "सब कुछ" है। ये बात मैं कैसे पचाऊँगा? मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। ये इत्तिफ़ाक रहा या मक़सद था ?  इस ज्ञान का मैं मोहताज़ नहीं। मैं ज़मीं पे चलता मानव हूँ, तेरे जैसा अकड़बाज़ नहीं।  जिस घर में कोई मान न हो,  उस घर आँगन न जाऊँगा।  मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। कितने घूँट ज़हर के पीऊँ? कितने झूठ सहन कर जीऊँ? मैं सीना ठोक के चलने वाला  ये ज़मीर ना माने झुक के जीऊँ। अरे झुकने को सौ बार झुकूँ मैं। पर हर बार नहीं झुक पाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला मान नहीं खो पाऊँगा। --- Hariram Regar #SundayPoetry

Ukraine Russia War Poetry || उगते सूरज अस्त हुए || By Hariram Regar

धधक रही संग्राम की ज्वाला। ना दया बची, ना मानवता है। यहाँ कलह, कृन्दन और रूदन है। ये मानव की ही दानवता है। कहीं सिर पड़े, कहीं धड़ पड़े, यहाँ शतकों जीवन पस्त हुए है। हर रोज निकलते सपने लेकर  वो उगते सूरज अस्त हुए है।। यहाँ बच्चे हैं, यहाँ बुढ़े है, यहाँ भरी जवानी लोग घने है। यहाँ बम बारूदों के मंज़र में, लोगों पर ही लोग तने है। कई जली झुग्गी झोपड़ियाँ, कई कई सौ भवन ढहे। ख़ाक हो गए सपने सारे जहाँ घर के घर ही ध्वस्त हुए है। हर रोज निकलते सपने लेकर  वो उगते सूरज अस्त हुए है।। कैसे लिखूँ मैं दर्द पिता का ? जिनके तनय चिता पर चिर सोए। कैसे लिखूँ दर्द उन माँ का मैं? जो अपने प्यारे सुत खोए। कैसे बयाँ करूँ बहनों का दुःख? जिनकी राखी रक्त से रंजित है। कैसे दर्द कहूँ उन बच्चों का जो अपनों से अब वंचित है। कैसे लिखूँ दर्द उस दर्द का मैं जिन घर के सारे दीप बुझे। जहाँ रोने वाला बचा न कोई ये देख 'हरि' के कंपित हस्त हुए है। हर रोज़ निकलते सपने लेकर वो उगते सूरज अस्त हुए है। ---Hariram Regar #SundayPoetry

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जय चित्तौड़(गीत)

'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की,  दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।3।

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी।  मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी।  मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी।  नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।।                                                                                                 ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार।  कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार।  यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते।  मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।।                                                                              ©Hariram Regar ************************************************ कोई जीने को खाता है, कोई जीता है खाने को। कोई कौड़ी बचाता है, कोई खर्चे, दिखाने को। अमीरी और गरीबी में यहाँ बस फ़र्क़ इतना है, कोई दौड़े कमाने को, कोई दौड़े पचाने को।।                                                                             ©Hariram

Self Respect || By Hariram Regar

स्वाभिमान(Self Respect)  जिस दिन तेरे हाथ में लाठी होगी। जिस दिन तेरी साँझ ढलेगी। वो दिन कितना प्यारा होगा? जिस दिन तू "हरि" से मिलेगी। ये लब्ज़ तेरे है, वचन तेरे है। इन वचन पे आँच न लाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला। मान नहीं खो पाऊँगा। जो तेरा मेरा यह रिश्ता है।  इसका तुझको कोई भान नहीं। मेरे गाँव से तेरा क्या नाता? इसका भी तुझको ध्यान नहीं। और तेरे गाँव में तेरा "सब कुछ" है। ये बात मैं कैसे पचाऊँगा? मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। ये इत्तिफ़ाक रहा या मक़सद था ?  इस ज्ञान का मैं मोहताज़ नहीं। मैं ज़मीं पे चलता मानव हूँ, तेरे जैसा अकड़बाज़ नहीं।  जिस घर में कोई मान न हो,  उस घर आँगन न जाऊँगा।  मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। कितने घूँट ज़हर के पीऊँ? कितने झूठ सहन कर जीऊँ? मैं सीना ठोक के चलने वाला  ये ज़मीर ना माने झुक के जीऊँ। अरे झुकने को सौ बार झुकूँ मैं। पर हर बार नहीं झुक पाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला मान नहीं खो पाऊँगा। --- Hariram Regar #SundayPoetry