4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी। मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी। मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी। नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।। ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार। कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार। यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते। मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।। ©Hariram Regar ************************************************ कोई जीने को खाता है, कोई जीता है खाने को। कोई कौड़ी बचाता है, कोई खर्चे, दिखाने को। अमीरी और गरीबी में यहाँ बस फ़र्क़ इतना है, कोई दौड़े कमाने को, कोई दौड़े पचाने को।। ©Hariram
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी, पृथ्वी परेशान हैं इससे भारी, चारों ओर फैली हैं बेरोजगारी, पीछे नहीं रही है महामारी, मुँह ताकने की अब है बारी, जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी धरती सिमटकर छोटी हो गयी। पेड़ पनपने की जगह नहीं। खेत देख लो नाम मात्र के , जनसँख्या वृद्धि इसकी वज़ह सही। मानव ने अपने ही पाँव कुल्हाड़ी मारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी रासायनिक खाद उपयोगी इतने, देशी खाद का नाम नहीं। बचे कुचे खेतों की हालत आज देख लो बिगड़ रही। इससे अब धरती है हारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी सुधा सा सलिल देती थी , वे थी नदियाँ गंगा-यमुना। हुई प्रदूषित सारी नदियाँ , पीने का पानी नहीं अधुना। अब अकाल पड़ता बारी बारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी जंगलों में बना दिए है घर, पहाड़ों को कर दिए समतल। हो गए सारे पशु पक्षी बेघर, सुखा दिए समुद्री दलदल। फिर भी रहने की समस्या भारी , जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी प्रदूषण ने पाँव पसारा , वाहनों की यह लम्बी कतारें। चलने की भी जगह नहीं है , शहरों की सड़कों के किनारे। व्यस्त पड़ी है सड़कें भारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी यह सब तो अल्लाह की देन है।, मुस्लिमों की यह बोली