जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी,
पृथ्वी परेशान हैं इससे भारी,
चारों ओर फैली हैं बेरोजगारी,
पीछे नहीं रही है महामारी,
मुँह ताकने की अब है बारी,
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
धरती सिमटकर छोटी हो गयी।
पेड़ पनपने की जगह नहीं।
खेत देख लो नाम मात्र के ,
जनसँख्या वृद्धि इसकी वज़ह सही।
मानव ने अपने ही पाँव कुल्हाड़ी मारी।
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
रासायनिक खाद उपयोगी इतने,
देशी खाद का नाम नहीं।
बचे कुचे खेतों की हालत
आज देख लो बिगड़ रही।
इससे अब धरती है हारी।
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
सुधा सा सलिल देती थी ,
वे थी नदियाँ गंगा-यमुना।
हुई प्रदूषित सारी नदियाँ ,
पीने का पानी नहीं अधुना।
अब अकाल पड़ता बारी बारी।
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
जंगलों में बना दिए है घर,
पहाड़ों को कर दिए समतल।
हो गए सारे पशु पक्षी बेघर,
सुखा दिए समुद्री दलदल।
फिर भी रहने की समस्या भारी ,
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
प्रदूषण ने पाँव पसारा ,
वाहनों की यह लम्बी कतारें।
चलने की भी जगह नहीं है ,
शहरों की सड़कों के किनारे।
व्यस्त पड़ी है सड़कें भारी।
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
यह सब तो अल्लाह की देन है।,
मुस्लिमों की यह बोली प्यारी।
हिन्दू भी कहते है कि
यह तो क़िस्मत है हमारी।
कमा खाएँगे बनकर श्रम पुजारी।
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी
पहले नंबर पर चीन की जनता ,
दूसरे पर भारत की बारी।
जनसँख्या को नियंत्रित करना ,
हम सब की है जिम्मेदारी।
दो बच्चे परिवार फुलवारी,
फिर न हो जनसँख्या इतनी सारी
----Hariram Regar
#SundayPoetry
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