कविता एक ऐसी कला है जो हृदय की गहराइयों से निकलकर सीधे आत्मा तक पहुँचती है। यह शब्दों के माध्यम से भावनाओं का ऐसा विस्तार है जो न केवल हमारे जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता है, बल्कि हमें नई दिशा भी प्रदान करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम जिस कविता पर चर्चा करेंगे, वह कविता कवि हरिराम रेगर की है, जो जीवन के कठिनाईयों के बीच हमें ठहरने और फिर से खड़े होने की प्रेरणा देती है। हरिराम रेगर की यह कविता हमारे जीवन के उन क्षणों को चित्रित करती है जब हम हार और निराशा के कगार पर होते हैं। यह बताती है कि कैसे जीवन में ठहरना ज़रूरी है ताकि हम अपनी गलतियों को सुधारकर फिर से उठ सकें। कविता : रुक जाना तुम इक पल को जब अरमानों में आग लगे और अपना रिश्ता झूठा हो। जब अपनों से ही चोट मिले, विश्वास बिखरकर टूटा हो। जब नमक छिड़क दे ज़ख्मों पर और आह निकलती पल पल को। जब सहनशक्ति का दीप बुझे, तब रुक जाना तुम इक पल को। जब मान तुम्हारा मर जाए, स्वाभिमान बिलखकर रोता हो। हृदय में जब शूल उठे, वो बीज पीर के बोता हो। जब शब्द तुम्हारे मौन बनें, और छोड़छाड़ दो अन्नजल को। जब जीवन का मतलब खो जाए, तब रुक जाना तुम इक पल को।
'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की, दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।3।