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Showing posts from September, 2024

रुक जाना तुम इक पल को | Hindi Kavita | By Hariram Regar

कविता एक ऐसी कला है जो हृदय की गहराइयों से निकलकर सीधे आत्मा तक पहुँचती है। यह शब्दों के माध्यम से भावनाओं का ऐसा विस्तार है जो न केवल हमारे जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता है, बल्कि हमें नई दिशा भी प्रदान करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम जिस कविता पर चर्चा करेंगे, वह कविता कवि हरिराम रेगर की है, जो जीवन के कठिनाईयों के बीच हमें ठहरने और फिर से खड़े होने की प्रेरणा देती है। हरिराम रेगर की यह कविता हमारे जीवन के उन क्षणों को चित्रित करती है जब हम हार और निराशा के कगार पर होते हैं। यह बताती है कि कैसे जीवन में ठहरना ज़रूरी है ताकि हम अपनी गलतियों को सुधारकर फिर से उठ सकें।  कविता : रुक जाना तुम इक पल को जब अरमानों में आग लगे और अपना रिश्ता झूठा हो। जब अपनों से ही चोट मिले, विश्वास बिखरकर टूटा हो। जब नमक छिड़क दे ज़ख्मों पर और आह निकलती पल पल को। जब सहनशक्ति का दीप बुझे, तब रुक जाना तुम इक पल को। जब मान तुम्हारा मर जाए, स्वाभिमान बिलखकर रोता हो। हृदय में जब शूल उठे, वो बीज पीर के बोता हो। जब शब्द तुम्हारे मौन बनें, और छोड़छाड़ दो अन्नजल को। जब जीवन का मतलब खो जाए, तब रुक जाना तुम इक पल को।

कुदरत है शिक्षक | Hindi Kavita | By Hariram Regar

कुदरत है शिक्षक नदी के अनवरत बहाव सी, जो कभी थमती नहीं। गिरती कहीं ऊँचाइयों से, टकराती पर्वतों से कहीं। पार करती जल-प्रपात को, हर हाल में बढ़ती रही। वो धार ही रसधार है, जो रूप दे मैदान को। जलता कहीं पर दीप सा, जब सघन हो विभावरी। दिखा देता सही दिशा, जब राह होती बावरी। उसके प्रकाश पुँज की, है अनन्त किरणें फूटती। तोड़ता है उस फलक के, प्रभात के गुमान को। झकझोरता सूखी डाल को, जैसे कोई समीर हो। उपजाता है बंजर जमीं, वो बारिश वाला नीर हो। हर बीज को जीवन मिले, उसकी अमृत बूँद से, हरियाली से मोहित करता, इस सकल जहान को। उड़ना सिखाता है हमें, नीला नीला सा अम्बर। जड़ों से जोड़े रखती है, वो मिट्टी की सौंधी खुश्बू। आसमान में रंग बिखेरे, चाँदनी की छांव को, शिखर पर जो ले जाए, दे पंख असीम उड़ान को। ये अटूट डोर ज्ञान की, जो थामती है हाथ को शब्द ही कहाँ यहाँ? जो कह दे दिल की बात को। देख ना सके कोई, पर हर कोई गुरु बना। अपने-अपने ज्ञान से, प्रकाशते जहान को। -- By Hariram Regar कुदरत है शिक्षक: जीवन की प्रेरणादायक शिक्षा हिंदी कविताएँ हमेशा से हमारे समाज में जीवन के विविध पहलुओं को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम रही

हम गाँव के देसी छोरे हैं – गांव की मिट्टी से जुड़ी हिंदी कविता | By Hariram Regar

गाँव की मिट्टी का महत्व और उसकी महक भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है। चाहे हम कितने ही आधुनिक हो जाएँ, गाँव की मिट्टी की सौंधी खुशबू और वहाँ की सरलता का कोई मुकाबला नहीं है। गाँवों का जीवन, प्रकृति के साथ सामंजस्य और वहाँ के लोगों का मेहनत से भरा हुआ जीवन, हर किसी को सिखाता है कि सादगी में ही असली ख़ुशी है। हिंदी कविता, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, ग्रामीण जीवन को बहुत अच्छे से चित्रित करती है। इसी क्रम में हरिराम रेगर  द्वारा रचित कविता "हम गाँव के देसी छोरे हैं" एक ग्रामीण जीवन का अद्भुत चित्रण है। इस कविता में न केवल गाँव की संस्कृति को, बल्कि वहाँ के लोगों की मेहनत, मिट्टी के प्रति लगाव, और जीवन के प्रति उनके सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बखूबी दर्शाया गया है। यह कविता गाँव की सरलता और वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच रहने वाले लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्त करती है। हम गाँव के देसी छोरे हैं – कविता खेतों में दौड़ें पग नंगे, मिट्टी में बसती जान अपनी। बाबा के संग बैल जोते थे, सींची थी प्यार से धान अपनी। नदियाँ, बगिया, जंगल, पहाड़, हर दृश्य यहाँ स

प्रकृति और प्रेम का संगम | Hindi Kavita | By Hariram Regar

प्रकृति और प्रेम का संगम: एक अद्वितीय कविता परिचय: कविता एक ऐसी कला है, जो शब्दों के माध्यम से दिल की गहराइयों को छू लेती है। हमारे जीवन में भावनाओं का अनमोल स्थान है, और उन्हें व्यक्त करने के लिए कविता से बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता। आज हम एक ऐसी कविता प्रस्तुत कर रहे हैं, जो न केवल प्रेम को दर्शाती है बल्कि प्रकृति की सुंदरता और सादगी को भी बखूबी चित्रित करती है। कविता: प्यारी-सी मुस्कान दिखी, जब सागर की लहरें लपकी। इक पल को वो ठहर गया था, ना मेरी पलकें झपकी। मैं क्या? मैं तो मानव हूँ, वो सागर भी सहसा सहमा। वो तब से तेरे चरण धो रहा, मैं लिखता हूँ ये नगमा। तेरे मन को भाते हैं, वन-उपवन व तारे-सितारे। पँछी, कलियाँ, वादी, पर्वत और सागर के किनारे। तेरे दिल में बसी हुई है, कुदरत की इक मूरत। आधुनिकता के इस जग में, तेरी प्यारी-सी सूरत। ज़िन्दा है अभिमान भी तुझमें जैसे थे अपने राणा, पत्ता-कलियाँ-गाँव-शहर, तुमको यूँ हर जन जाना। मुखड़े पर मुस्कान लिए हो, शिक्षक-सा भी ज्ञान लिए हो, और बताओ क्या लिख दूँ मैं? अब तक बस इतना पहचाना। -Hariram Regar कविता का सार: इस कविता का आरंभ होता है प्रेम की एक म

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जय चित्तौड़(गीत)

'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की,  दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।3।

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी।  मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी।  मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी।  नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।।                                                                                                 ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार।  कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार।  यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते।  मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।।                                                                              ©Hariram Regar ************************************************ कोई जीने को खाता है, कोई जीता है खाने को। कोई कौड़ी बचाता है, कोई खर्चे, दिखाने को। अमीरी और गरीबी में यहाँ बस फ़र्क़ इतना है, कोई दौड़े कमाने को, कोई दौड़े पचाने को।।                                                                             ©Hariram

Self Respect || By Hariram Regar

स्वाभिमान(Self Respect)  जिस दिन तेरे हाथ में लाठी होगी। जिस दिन तेरी साँझ ढलेगी। वो दिन कितना प्यारा होगा? जिस दिन तू "हरि" से मिलेगी। ये लब्ज़ तेरे है, वचन तेरे है। इन वचन पे आँच न लाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला। मान नहीं खो पाऊँगा। जो तेरा मेरा यह रिश्ता है।  इसका तुझको कोई भान नहीं। मेरे गाँव से तेरा क्या नाता? इसका भी तुझको ध्यान नहीं। और तेरे गाँव में तेरा "सब कुछ" है। ये बात मैं कैसे पचाऊँगा? मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। ये इत्तिफ़ाक रहा या मक़सद था ?  इस ज्ञान का मैं मोहताज़ नहीं। मैं ज़मीं पे चलता मानव हूँ, तेरे जैसा अकड़बाज़ नहीं।  जिस घर में कोई मान न हो,  उस घर आँगन न जाऊँगा।  मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला  मान नहीं खो पाऊँगा। कितने घूँट ज़हर के पीऊँ? कितने झूठ सहन कर जीऊँ? मैं सीना ठोक के चलने वाला  ये ज़मीर ना माने झुक के जीऊँ। अरे झुकने को सौ बार झुकूँ मैं। पर हर बार नहीं झुक पाऊँगा। मैं खुद को ज़िन्दा रखने वाला मान नहीं खो पाऊँगा। --- Hariram Regar #SundayPoetry