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रुक जाना तुम इक पल को | Hindi Kavita | By Hariram Regar

कविता एक ऐसी कला है जो हृदय की गहराइयों से निकलकर सीधे आत्मा तक पहुँचती है। यह शब्दों के माध्यम से भावनाओं का ऐसा विस्तार है जो न केवल हमारे जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता है, बल्कि हमें नई दिशा भी प्रदान करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम जिस कविता पर चर्चा करेंगे, वह कविता कवि हरिराम रेगर की है, जो जीवन के कठिनाईयों के बीच हमें ठहरने और फिर से खड़े होने की प्रेरणा देती है।

हरिराम रेगर की यह कविता हमारे जीवन के उन क्षणों को चित्रित करती है जब हम हार और निराशा के कगार पर होते हैं। यह बताती है कि कैसे जीवन में ठहरना ज़रूरी है ताकि हम अपनी गलतियों को सुधारकर फिर से उठ सकें। 

कविता : रुक जाना तुम इक पल को

जब अरमानों में आग लगे
और अपना रिश्ता झूठा हो।
जब अपनों से ही चोट मिले,
विश्वास बिखरकर टूटा हो।

जब नमक छिड़क दे ज़ख्मों पर
और आह निकलती पल पल को।
जब सहनशक्ति का दीप बुझे,
तब रुक जाना तुम इक पल को।

जब मान तुम्हारा मर जाए,
स्वाभिमान बिलखकर रोता हो।
हृदय में जब शूल उठे,
वो बीज पीर के बोता हो।

जब शब्द तुम्हारे मौन बनें,
और छोड़छाड़ दो अन्नजल को।
जब जीवन का मतलब खो जाए,
तब रुक जाना तुम इक पल को।

पग पग पर राह से भटके हो,
धुँधली आशा की ज्योति हो।
जब घनघोर अँधेरा छा जाये
और रात अँधेरी मोटी हो।

जब दिल में डर के साये हों,
और हिम्मत टूटे पल पल को।
जब स्वप्न सने हो माटी में,
तब रुक जाना तुम इक पल को।

पर रुकना मत, ये अंत नहीं,
कभी हार नहीं मंज़ूर करो।
रुको, ठहरो, फिर साँस भरो,
और कमियाँ जो हैं दूर करो।

उस पल के ठहराव से तुम,
गढ़ोगे अपने स्वर्णिम कल को।
फिर जागेगी आशा की किरणें,
तब बढ़ जाना तुम हर पल को।

By Hariram Regar


कविता का सार

कविता की शुरुआत होती है उन कठिनाइयों से, जिनका सामना हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में करते हैं। जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जब हमारे अरमान टूट जाते हैं, रिश्ते हमें छलते हैं, और हम खुद को निराशा की गहराइयों में डूबा पाते हैं। यह कविता उन सभी अनुभवों को समेटे हुए हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है — "रुक जाना तुम इक पल को।"

इस कविता का प्रत्येक शेर हमारे मन के भीतर गहराई से उत्पन्न होने वाली पीड़ाओं और संघर्षों का वर्णन करता है, लेकिन इसका उद्देश्य केवल निराशा नहीं, बल्कि उससे उबरने की प्रेरणा देना है।

पहले हिस्से का विश्लेषण:

जब अरमानों में आग लगे
और अपना रिश्ता झूठा हो

कविता का यह हिस्सा उन क्षणों की ओर संकेत करता है जब हमारे सपने ध्वस्त हो जाते हैं, और जिन रिश्तों पर हम विश्वास करते थे, वे हमें धोखा दे जाते हैं। यह परिस्थिति किसी भी इंसान के लिए सबसे कठिन होती है क्योंकि यह हमारी आत्मा को झकझोर देती है। हमारे अरमान, हमारे सपने जो हमने जीवन के प्रति संजोए थे, उनमें आग लगती है और हमें रिश्तों की सच्चाई का सामना करना पड़ता है। इस दर्द को समझने के लिए यह पंक्तियाँ बहुत गहरी हैं, जो हर उस व्यक्ति के दिल को छूती हैं जिसने कभी अपने जीवन में रिश्तों का टूटना महसूस किया हो।

जब अपनों से ही चोट मिले
विश्वास बिखरकर टूटा हो

यह पंक्तियाँ विशेष रूप से उस दर्द को उजागर करती हैं जब अपने ही हमें छलते हैं और विश्वास की दीवार गिर जाती है। अपनों से चोट मिलना सबसे बड़ा घाव होता है, क्योंकि जिस इंसान से हम प्यार और समर्थन की उम्मीद रखते हैं, उसी से मिलने वाली चोट और धोखा हमें भीतर से तोड़ देता है। कविता में यह संकेत मिलता है कि जब ऐसा हो, तब एक पल के लिए ठहरना ज़रूरी है ताकि हम अपने विचारों को संवार सकें।

जब नमक छिड़क दे ज़ख्मों पर
और आह निकलती पल पल को

यहाँ पीड़ा की पराकाष्ठा का उल्लेख किया गया है। ज़ख्म पर नमक छिड़कने का अर्थ है कि जब हम पहले से ही दुखी और पीड़ित होते हैं, तब और भी कठिनाइयाँ हमारे ऊपर आ जाती हैं। यह पंक्तियाँ उस मानसिक और शारीरिक पीड़ा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो जीवन में निरंतर चलते रहने के दौरान हमें झेलनी पड़ती है।

जब सहनशक्ति का दीप बुझे,
तब रुक जाना तुम इक पल को।

इन पंक्तियों में कहा गया है कि जब हमारी सहनशक्ति का दीपक बुझने लगे, जब हम और आगे बढ़ने में असमर्थ महसूस करें, तब हमें एक पल ठहर जाना चाहिए। जीवन के इस ठहराव में हमें खुद को पुनः सशक्त बनाने का समय मिलता है। यह ठहराव हमारे लिए आत्ममंथन का अवसर है, जिसमें हम अपनी गलतियों से सीख सकते हैं और आने वाले कल के लिए अपनी योजनाओं को फिर से मजबूती से बना सकते हैं।

दूसरे हिस्से का विश्लेषण:

जब मान तुम्हारा मर जाए,
स्वाभिमान बिलखकर रोता हो।

यह पंक्तियाँ हमारे आत्मसम्मान और स्वाभिमान की बात करती हैं। जब हमारा मान-सम्मान हमें छोड़ देता है और हम अपने स्वाभिमान के लिए तरसते हैं, तब हमारा आत्मबल भी टूटने लगता है। यह जीवन का वह क्षण होता है जब हम खुद को पूरी तरह हारा हुआ महसूस करते हैं।

हृदय में जब शूल उठे,
वो बीज पीर के बोता हो।

यहाँ हृदय की पीड़ा को शूल यानी कांटे के रूप में दर्शाया गया है। जब हमारे दिल में गहरे दुख और दर्द की भावना उत्पन्न होती है, तब यह भावनाएँ हमारे भीतर पीड़ा का बीज बोती हैं। यह पीड़ा जीवन के हर हिस्से में फैल जाती है, जिससे हमें हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है।

जब शब्द तुम्हारे मौन बनें,
और छोड़छाड़ दो अन्नजल को।

यह पंक्तियाँ उन क्षणों का वर्णन करती हैं जब हम इतने निराश होते हैं कि हमारे शब्द भी मौन हो जाते हैं। हमारी वाणी, जो हमारे मन के भावों का माध्यम है, वह ठहर जाती है, और हम किसी से कुछ कह पाने में असमर्थ हो जाते हैं। इसके अलावा, यह पंक्तियाँ उस स्थिति का वर्णन करती हैं जब हम मानसिक और भावनात्मक रूप से इतने टूट जाते हैं कि हमें अपने शारीरिक स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं रहती, और हम भोजन-पानी भी छोड़ देते हैं।

जब जीवन का मतलब खो जाए,
तब रुक जाना तुम इक पल को।

यह पंक्तियाँ जीवन की उस स्थिति का उल्लेख करती हैं जब हमें यह महसूस होता है कि जीवन का कोई मतलब नहीं रह गया है। यह सबसे गहरी निराशा का क्षण होता है, जब हमें लगता है कि हमारी ज़िंदगी का कोई उद्देश्य नहीं बचा। ऐसे में यह कविता हमें एक बार फिर से रुकने की सलाह देती है। ठहराव के इस पल में हमें आत्मनिरीक्षण करने और अपने जीवन के नए अर्थ को खोजने का मौका मिलता है।

तीसरे हिस्से का विश्लेषण:

पग पग पर राह से भटके हो,
धुँधली आशा की ज्योति हो।

यहाँ कवि उन परिस्थितियों की ओर संकेत करता है जब हम जीवन के रास्ते में भटक जाते हैं। हमारी आशाओं की ज्योति धुँधली हो जाती है, और हमें कोई दिशा नहीं मिलती। जब हम निराशा के अंधेरे में खो जाते हैं, तब हमें यह समझने की ज़रूरत होती है कि यह भटकाव भी हमारे जीवन का हिस्सा है।

जब घनघोर अँधेरा छा जाए,
और रात अँधेरी मोटी हो।

यह पंक्तियाँ उस घने अंधकार का वर्णन करती हैं जो जीवन में आ सकता है। यहाँ "रात अँधेरी मोटी हो" से संकेत मिलता है कि कठिनाइयाँ और परेशानियाँ इतनी बड़ी हो जाती हैं कि हमें कोई उम्मीद की किरण नज़र नहीं आती।

जब दिल में डर के साये हों,
और हिम्मत टूटे पल पल को।

यहाँ कवि ने दिल के डर और हिम्मत के टूटने का उल्लेख किया है। जब हमें हर पल डर सताने लगता है और हमारी हिम्मत लगातार टूटती जाती है, तब हमें एक पल के लिए ठहरकर अपने अंदर की शक्ति को फिर से जगाने की ज़रूरत होती है।

जब स्वप्न सने हो माटी में,
तब रुक जाना तुम इक पल को।

यह पंक्तियाँ उन सपनों का ज़िक्र करती हैं जो माटी में मिल जाते हैं, यानी हमारे सपने ध्वस्त हो जाते हैं। ऐसे समय में हमें एक बार फिर से ठहरने की ज़रूरत होती है ताकि हम अपने सपनों को फिर से संवार सकें और उन्हें नई दिशा दे सकें।

अंतिम हिस्से का विश्लेषण:

अब कविता अपने चरम पर पहुँचती है, जहाँ कवि हमें ठहरने की सलाह देता है, लेकिन इसके साथ ही एक संदेश भी देता है कि यह ठहराव केवल अस्थायी है।

पर रुकना मत, ये अंत नहीं,
कभी हार नहीं मंज़ूर करो।

यह पंक्तियाँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में रुकना आवश्यक है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम हार मान लें। हमें इस ठहराव को अपनी हार नहीं समझनी चाहिए, बल्कि इसे एक नए आरंभ का संकेत मानना चाहिए।

रुको, ठहरो, फिर साँस भरो,
और कमियाँ जो हैं दूर करो।

यह पंक्तियाँ हमें आत्मनिरीक्षण करने की सलाह देती हैं। जब हम ठहरते हैं, तब हमें अपनी कमजोरियों को पहचानने और उन्हें सुधारने का अवसर मिलता है। यह ठहराव हमें अपनी गलतियों से सीखने और खुद को बेहतर बनाने का मौका देता है।

उस पल के ठहराव से तुम,
गढ़ोगे अपने स्वर्णिम कल को।

यहाँ कवि हमें यह सिखाता है कि ठहराव के उन पलों में हम अपने भविष्य की नींव रख सकते हैं। यह ठहराव हमें आने वाले कल के लिए तैयार करता है, और हमें यह सोचने का समय देता है कि हम अपने भविष्य को कैसे सँवार सकते हैं।

फिर जागेगी आशा की किरणें,
तब बढ़ जाना तुम हर पल को।

यह पंक्तियाँ हमें आशा और उम्मीद की ओर लौटाती हैं। ठहरने के बाद, जब हमें नई आशा और हिम्मत मिलती है, तब हमें हर पल के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह ठहराव केवल एक नया आरंभ होता है, और इसके बाद हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार होना चाहिए।

निष्कर्ष:

इस कविता में कवि हरिराम रेगर ने जीवन के कठिन क्षणों का सजीव चित्रण किया है, और साथ ही हमें यह भी सिखाया है कि कैसे इन कठिनाइयों का सामना करना चाहिए। यह कविता हमें ठहरने की सलाह देती है, लेकिन साथ ही हमें यह भी सिखाती है कि यह ठहराव केवल अस्थायी है। हमें अपनी गलतियों से सीखने, अपने दर्द को समझने और फिर से आगे बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।

यह कविता हमें यह सिखाती है कि जीवन की हर कठिनाई के बाद एक नया सवेरा आता है, और हमें उस सवेरे का स्वागत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह जीवन का एक सत्य है कि हम हर बार गिरते हैं, लेकिन हमें हर बार उठने का साहस भी चाहिए। यही जीवन की सच्चाई है, और यही इस कविता का संदेश है।


आपकी राय:
आप इस कविता को कैसे देखते हैं? क्या आपने कभी ऐसे क्षणों का सामना किया है जहाँ ठहरना और फिर से उठना ज़रूरी हो गया हो? अपने अनुभवों को हमारे साथ साझा करें और बताएं कि कैसे इस कविता ने आपको प्रेरित किया।

--Team HindiPoems.in

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