सुभद्राकुमारी चौहान की कविता- राखी की चुनौती
बहिन आज फूली समाती न मन में।
तड़ित आज फूली समाती न घन में॥
घटा है न झूली समाती गगन में।
लता आज फूली समाती न बन में॥
कहीं राखियाँ हैं, चमक है कहीं पर,
कहीं बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं।
ये आई है राखी, सुहाई है पूनो,
बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं॥
मैं हूँ बहिन किंतु भाई नहीं है।
है राखी सजी पर कलाई नहीं है॥
है भादों, घटा किंतु छाई नहीं है।
नहीं है ख़ुशी, पर रुलाई नहीं है॥
मेरा बंधु माँ की पुकारों को सुनकर-
के तैयार हो जेलख़ाने गया है।
छिनी है जो स्वाधीनता माँ की उसको,
वह जालिम के घर में से लाने गया है॥
मुझे गर्व है किंतु राखी है सूनी,
वह होता, ख़ुशी तो क्या होती न दूनी?
हम मंगल मनावें, वह तपता है धूनी।
है घायल हृदय, दर्द उठता है ख़ूनी॥
है आती मुझे याद चित्तौर गढ़ की,
धधकती है दिल में वह जौहर की ज्वाला।
है माता-बहिन रो के उसको बुझाती,
कहो भाई, तुमको भी है कुछ कसाला?
है, तो बढ़े हाथ, राखी पड़ी है।
रेशम-सी कोमल नहीं यह कड़ी है॥
अजी देखो लोहे की यह हथकड़ी है।
इसी प्रण को लेकर बहिन यह खड़ी है॥
आते हो भाई ? पुन पूछती हूँ-
कि माता के बंधन की है लाज तुमको?
-तो बंदी बनो, देखो बंधन है कैसा,
चुनौती यह राखी की है आज तुमको॥
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राखी की चुनौती: सुभद्राकुमारी चौहान की अमर कविता
राखी—यह मात्र एक धागा नहीं, बल्कि प्रेम, सुरक्षा, और संकल्प का प्रतीक है। यह वह दिन है जब बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं। लेकिन सुभद्राकुमारी चौहान की कविता "राखी की चुनौती" में यह धागा सिर्फ एक वचन का नहीं, बल्कि देश की आजादी के लिए किए गए संकल्प का प्रतीक बन जाता है।
कविता की शुरुआत में बहन की भावनाओं को व्यक्त किया गया है, जिसकी राखी की थाली सजी हुई है, लेकिन कलाई सूनी है। बहन को गर्व है कि उसका भाई जेलखाने में बंद है, क्योंकि उसने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया है। वह भाई के इस बलिदान पर गर्व करती है, लेकिन साथ ही दिल में एक दर्द भी है।
सुभद्राकुमारी चौहान ने इस कविता में राखी के धागे को लोहे की हथकड़ी से तुलना की है। वह भाई से पूछती है, "आते हो भाई?"—क्या तुम इस चुनौती को स्वीकार करते हो? क्या तुम माँ के बंधन की लाज रखोगे? यह प्रश्न न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान से भी जुड़ा हुआ है।
इस कविता के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया है कि आजादी के संघर्ष में हर एक को अपना योगदान देना चाहिए। चाहे वह भाई हो, बहन हो, या माँ, हर किसी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
राखी का त्योहार हमें न केवल पारिवारिक बंधनों की याद दिलाता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने देश, समाज और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए। सुभद्राकुमारी चौहान की यह कविता हमें यह प्रेरणा देती है कि हम अपनी जिम्मेदारियों को समझें और अपने कर्तव्यों का पालन करें।
राखी की चुनौती आज भी प्रासंगिक है। यह कविता हमें यह याद दिलाती है कि हमारे संघर्ष, त्याग, और बलिदान का मूल्य कभी कम नहीं होता। चाहे वह व्यक्तिगत हो या राष्ट्रीय, हर चुनौती को स्वीकार करना और उसे पार करना ही सच्चा जीवन है।
काव्यांश:
"मैं हूँ बहिन किंतु भाई नहीं है।
है राखी सजी पर कलाई नहीं है।
है भादों, घटा किंतु छाई नहीं है।
नहीं है ख़ुशी, पर रुलाई नहीं है।"
इस कविता के ये पंक्तियाँ हर उस बहन की भावना को उजागर करती हैं, जिसका भाई देश की सेवा में हो और जो गर्वित भी है और व्यथित भी।
राखी के इस पर्व पर, हमें उन वीरों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने हमारी स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।
- Team HindiPoems.in
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