बचाए धरती मात को
होम हो रहा है धरती का,
प्रदूषण ने डाला डेरा।
मानव के कुकर्मों का,
फैला है चहुँ और अँधेरा।
बदलो अपनी आदत को,
समझाओ मानव जात को।
आओ हम सब मिलके बचाए,
अपनी धरती मात को।।1।।
कुछ वर्षों से धरती माता,
दुःख-कष्टों में पड़ी है।
अब नहीं सहन कर सकती है,
यह विनाश कगारे खड़ी है।
अगर सुख से जीना चाहो,
रोको दुःख की रात को।
आओ हम सब मिलके बचाए,
अपनी धरती मात को।।2।।
सुख के साधन हमने,तुमने खोजे,
कर लिया सुख का आभास।
इतना सा सुख ढेरों दुःख देगा,
कर देगा हमारा विनाश।
हम अपना तो भला सोचें,
पर न आने दे विनाश की वात को।
आओ हम सब मिलके बचाए,
अपनी धरती मात को।।3।।
नहीं विरासत में मिली हमें यह,
लिया पूर्वजों से उधार हमने।
क्या देंगें हम भावी पीढ़ी को ?
अगर किया इसे बीमार हमने।
सोचो अपने मन ही मन,
और उत्तरित करो इस बात को।
आओ हम सब मिलके बचाए,
अपनी धरती मात को।।4।।
आज नही तो कल यह हम पर,
सारा क्रोध उगल देगी।
हमारी इन सब खुशियों को,
यह पल भर में मसल देगी।
अगर किया नहीं सम्मान इसका,
तो कैसे रोकोगे इसके घात को।
आओ हम सब मिलके बचाए,
अपनी धरती मात को।।5।।
---By Hariram Regar
#SundayPoetry
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