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Showing posts from October, 2019

कठुआ काँड

कठुआ काँड मेरे अन्तर्मन में ख़ूब गिला था जब इक कोमल सा दिल जला था। इंसानियत इस हद तक भी गिर सकती हैं , जब कठुआ काँड का पता चला था।। आज इंसानियत का पानी बेकार होते देखा है , एक - दो को नही आठ - आठ को सवार होते देखा है। अरे हैवानियत तो इतनी भर गई है दुनिया में , बड़ो का तो छोड़ो , बच्चों को रेपाहार होते देखा है।। उस अबोध बच्ची को नरक का फ़ील होते देखा है , नर रूपी हैवानों से ज़लील होते देखा है। चिन्ता उस बच्ची की नही है सरकारों को , मैंने तो मुद्दे को धर्म और राजनीति में तब्दील होते देखा है।।

चाँद से गुफ़्तगू / Hindi Poetry book

पुस्तक का नाम: चाँद से गुफ़्तगू       कविता संग्रह        लेखक - हरिराम रेगर  पुस्तक अभी उपलब्ध है : Special ऑफर आपके लिए : Paperback                                 eBook अगर आप फ्री में eBook पढ़ना चाहते है तो अपना नाम और ईमेल पता देकर तुरन्त पा सकते है।  ये सिर्फ आपके लिए है।  FREE EBOOK GET NOW

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जय चित्तौड़(गीत)

'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की,  दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूं...

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी।  मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी।  मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी।  नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।।                                                                                                 ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार।  कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार।  यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते।  मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।।               ...

हम गाँव के देसी छोरे हैं – गांव की मिट्टी से जुड़ी हिंदी कविता | By Hariram Regar

गाँव की मिट्टी का महत्व और उसकी महक भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है। चाहे हम कितने ही आधुनिक हो जाएँ, गाँव की मिट्टी की सौंधी खुशबू और वहाँ की सरलता का कोई मुकाबला नहीं है। गाँवों का जीवन, प्रकृति के साथ सामंजस्य और वहाँ के लोगों का मेहनत से भरा हुआ जीवन, हर किसी को सिखाता है कि सादगी में ही असली ख़ुशी है। हिंदी कविता, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, ग्रामीण जीवन को बहुत अच्छे से चित्रित करती है। इसी क्रम में हरिराम रेगर  द्वारा रचित कविता "हम गाँव के देसी छोरे हैं" एक ग्रामीण जीवन का अद्भुत चित्रण है। इस कविता में न केवल गाँव की संस्कृति को, बल्कि वहाँ के लोगों की मेहनत, मिट्टी के प्रति लगाव, और जीवन के प्रति उनके सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बखूबी दर्शाया गया है। यह कविता गाँव की सरलता और वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच रहने वाले लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्त करती है। हम गाँव के देसी छोरे हैं – कविता खेतों में दौड़ें पग नंगे, मिट्टी में बसती जान अपनी। बाबा के संग बैल जोते थे, सींची थी प्यार से धान अपनी। नदियाँ, बगिया, जंगल, पहाड़, हर दृश्य यहाँ स...