कठुआ काँड
मेरे अन्तर्मन में ख़ूब गिला था
जब इक कोमल सा दिल जला था।
इंसानियत इस हद तक भी गिर सकती हैं,
जब कठुआ काँड का पता चला था।।
आज इंसानियत का पानी बेकार होते देखा है,
एक-दो को नही आठ-आठ को सवार होते देखा है।
अरे हैवानियत तो इतनी भर गई है दुनिया में,
बड़ो का तो छोड़ो, बच्चों को रेपाहार होते देखा है।।
उस अबोध बच्ची को नरक का फ़ील होते देखा है,
नर रूपी हैवानों से ज़लील होते देखा है।
चिन्ता उस बच्ची की नही है सरकारों को,
मैंने तो मुद्दे को धर्म और
राजनीति में तब्दील होते देखा है।।
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