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आत्महत्या क्या विषाद था तेरे मन में? क्यों लटक गया तू फंदे पर? जो औरों को कन्धा देता, क्यों आज है वो पर कंधे पर? क्या गिला रहा इस जीवन से? जो अकाल काल के गले मिला। जिसको नभ में था विचरण करना, क्यों बंद कक्ष-छत तले मिला? क्या इतना विशाल संकट था? जो जीकर ना सुलझा पाया। अरे! इतनी भी क्या शर्म-अकड़? जो अपनो को ना बतलाया। क्या जीवन से भारी कोई जीवन में ही आँधी आई? इन छुट-मुट संकट के चक्कर में मृत्यु ही क्यों मन भायी? हाँ हार गया हो भले मगर, हाँ कुछ ना मिला हो भले मगर, या जीत गया हो भले मगर, पर जीवन थोड़ी था हारा? अरे! हार जीत तो चलती रहती। इस हार से ही क्यों अँधियारा ?
चलना मुझे अकेला सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था। इच्छा नहीं थी मेरी फिर भी, मन ने मुझे धकेला था। सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था । ।1 । । क्या बारिश से रुक सकता है ? चन्द्रमा का चलना। क्या बारिश से रुक सकता है ? पृथ्वी का घूर्णन करना । यह मेरे मन ने मुझको बोला था । सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था । ।2 । । आज बारिश से बच सकता तू, कल दुःख की बाढ़ में बहना । तू इतनी सी बात से डरता तो, तुझे स्वलक्ष्य से वंचित रहना । मन ने मुझे समझाते हुए, ऐसा भी कह डाला था । सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था । ।3 । । समय किसी से नहीं रुकता है, यह तो निरन्तर चलता है। जीत भी उसी की होती, जो समय पर सम्भलता है । मुझको भी ऐसे ही चलना, मस्तिष्
तेरा इन्तजार रहेगा मैं तुझसे हूँ मीलों दूर , तू मु झसे है कोसों दूर। रहूँ मैं चाहे कैसा भी पर, प्यार करूँ तुझसे भरपूर। ऐ सनम ! नहीं भूला तुझको , मुझको तुझसे प्यार रहेगा। बस तू मेरा इन्तजार कर , मुझको तेरा इन्तजार रहेगा॥ 1 ॥ हर पल हर क्षण याद करूँ मैं , भगवन से फरियाद करूँ मैं , जाने वो पल कब आएगा ? फिर भी वक्त बर्बाद करूँ मैं। तू मेरी रानी बन घर आये, ये दिल तेरा दिलदार रहेगा। बस तू मेरा इन्तजार कर , मुझको तेरा इन्तजार रहेगा॥ 2 ॥ तू मुझसे मौन थी पर , मैं न समझा तू नाराज़ है। तेरी इस ख़ामोशी में भी कोई न कोई राज़ है। तू ये ख़ामोशी भी बनाये रख, तेरी इस ख़ामोशी से भी प्यार रहेगा। बस तू मेरा इन्तजार कर , मुझको तेरा इन्तजार रहेगा॥ 3 ॥ ---By Hariram Regar Tera Intazaar Rahega main tujhse hoon meelon dur, Tu mujhase hai koson dur. rahoon main chaahe kaisa bhee par, pyaar karoon tujhase bharapoor| E sanam! nahin bhoola tujhako, mujhako tujhase
जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी, पृथ्वी परेशान हैं इससे भारी, चारों ओर फैली हैं बेरोजगारी, पीछे नहीं रही है महामारी, मुँह ताकने की अब है बारी, जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी धरती सिमटकर छोटी हो गयी। पेड़ पनपने की जगह नहीं। खेत देख लो नाम मात्र के , जनसँख्या वृद्धि इसकी वज़ह सही। मानव ने अपने ही पाँव कुल्हाड़ी मारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी रासायनिक खाद उपयोगी इतने, देशी खाद का नाम नहीं। बचे कुचे खेतों की हालत आज देख लो बिगड़ रही। इससे अब धरती है हारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी सुधा सा सलिल देती थी , वे थी नदियाँ गंगा-यमुना। हुई प्रदूषित सारी नदियाँ , पीने का पानी नहीं अधुना। अब अकाल पड़ता बारी बारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी जंगलों में बना दिए है घर, पहाड़ों को कर दिए समतल। हो गए सारे पशु पक्षी बेघर, सुखा दिए समुद्री दलदल। फिर भी रहने की समस्या भारी , जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी प्रदूषण ने पाँव पसारा , वाहनों की यह लम्बी कतारें। चलने की भी जगह नहीं है , शहरों की सड़कों के किनारे। व्यस्त पड़ी है सड़कें भारी। जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी यह सब तो अल्लाह की देन है।, मुस्लिमों की यह बोली
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