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चलना मुझे अकेला सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था। इच्छा नहीं थी मेरी फिर भी, मन ने मुझे धकेला था। सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था । ।1 । । क्या बारिश से रुक सकता है ? चन्द्रमा का चलना। क्या बारिश से रुक सकता है ? पृथ्वी का घूर्णन करना । यह मेरे मन ने मुझको बोला था । सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था । ।2 । । आज बारिश से बच सकता तू, कल दुःख की बाढ़ में बहना । तू इतनी सी बात से डरता तो, तुझे स्वलक्ष्य से वंचित रहना । मन ने मुझे समझाते हुए, ऐसा भी कह डाला था । सड़क पड़ी सुनसान भाइयों ! चलना मुझे अकेला था । ।3 । । समय किसी से नहीं रुकता है, यह तो निरन्तर चलता है। जीत भी उसी की होती, जो समय पर सम्भलता है । मुझको भी ऐसे ही चलना, मस्तिष्
'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की, दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।3।
आत्महत्या क्या विषाद था तेरे मन में? क्यों लटक गया तू फंदे पर? जो औरों को कन्धा देता, क्यों आज है वो पर कंधे पर? क्या गिला रहा इस जीवन से? जो अकाल काल के गले मिला। जिसको नभ में था विचरण करना, क्यों बंद कक्ष-छत तले मिला? क्या इतना विशाल संकट था? जो जीकर ना सुलझा पाया। अरे! इतनी भी क्या शर्म-अकड़? जो अपनो को ना बतलाया। क्या जीवन से भारी कोई जीवन में ही आँधी आई? इन छुट-मुट संकट के चक्कर में मृत्यु ही क्यों मन भायी? हाँ हार गया हो भले मगर, हाँ कुछ ना मिला हो भले मगर, या जीत गया हो भले मगर, पर जीवन थोड़ी था हारा? अरे! हार जीत तो चलती रहती। इस हार से ही क्यों अँधियारा ?
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