मैं सुबह-सवेरे साँझ-अँधेरे, तेरा ध्यान लगाता हूँ।
हे महाकाल! तेरे चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।
हे गरलधर! हे नीलकण्ठ! तुम पूरे विश्व विधाता हो।
राख-भभूति से लथपथ हो, भाँग के पूरे ज्ञाता हो।
गले में माला शेषनाग की, विष्णु के तुम भ्राता हो।
बड़ा सहारा भक्तों का हो, सब याचक तुम दाता हो।
सोच यही हर पल, हर क्षण, मैं जमकर धूम मचाता हूँ।
हे महाकाल! तेरे चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।
हे जटाधारी, कैलाशपति! तुम सृष्टि के महानायक हो।
हे स्वरमयी महाकाल अनघ! तुम ताँडव के महागायक हो।
तुम गंगाधर, तुम चन्द्रशेखर, तुम त्रिअक्षी, तुम हो अक्षर।
हे शूलपाणि! हे उमापति! हे कृपानिधि! हे शिव शंकर!
तेरे नाम अनेकों है जग में, उन नाम को मैं जप जाता हूँ।
हे महाकाल! तेरे चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।
हे व्योमकेश महासेनजनक! हे गौरीनाथ! हे पशुपति!
हे वीरभद्र! हे पंचवक्त्र! हे मृत्युंजय! हे पुरारति!
हे वामदेव! हे सुरसूदन! हे भुजंगभूषण! हे भगवन!
हे प्रजापति! हे शिव शम्भू! हे सोमसूर्यअग्निलोचन!
हाँ तू है "हरि", हूँ मैं भी "हरि", पर अंतर जमीं व नभ का है।
इस धरा पे जब से आया हूँ मैं,नाता तुझसे तब का है।
तू सर्वव्यापी, मैं चरण-धूल। तेरे पग में ये गीत चढ़ाता हूँ।
हे महाकाल! तेरे चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।
हे वामदेव! हे सुरसूदन! हे भुजंगभूषण! हे भगवन!
हे प्रजापति! हे शिव शम्भू! हे सोमसूर्यअग्निलोचन!
हे व्योमकेश महासेनजनक! हे गौरीनाथ! हे पशुपति!
हे वीरभद्र! हे पंचवक्त्र! हे मृत्युंजय! हे पुरारति!
हे गंगाधर, हे चन्द्रशेखर, हे त्रिअक्षी, तुम हो अक्षर।
हे शूलपाणि! हे उमापति! हे कृपानिधि! हे शिव शंकर!
#SundayPoetry with Hariram Regar
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