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Showing posts from May, 2022

जनसंख्या हुई हैं इतनी सारी | By Hariram Regar

जनसंख्या  हुई हैं इतनी सारी, पृथ्वी परेशान हैं इससे भारी, चारों ओर फैली हैं बेरोजगारी, पीछे नहीं रही है महामारी, मुँह ताकने की अब है बारी, जनसंख्या  हुई हैं इतनी सारी धरती सिमटकर छोटी हो गयी।  पेड़ पनपने की जगह नहीं।  खेत देख लो नाम मात्र के , जनसँख्या वृद्धि इसकी वज़ह सही।  मानव ने अपने ही पाँव कुल्हाड़ी मारी। जनसंख्या  हुई हैं इतनी सारी रासायनिक खाद उपयोगी इतने, देशी खाद का नाम नहीं।  बचे कुचे खेतों की हालत  आज देख लो बिगड़ रही।  इससे अब धरती है हारी। जनसंख्या  हुई हैं इतनी सारी सुधा सा सलिल देती थी , वे थी नदियाँ गंगा-यमुना।  हुई प्रदूषित सारी नदियाँ , पीने का पानी नहीं अधुना।  अब अकाल पड़ता बारी बारी।  जनसंख्या  हुई हैं इतनी सारी जंगलों में बना दिए है घर, पहाड़ों को कर दिए समतल।  हो गए सारे पशु पक्षी बेघर, सुखा दिए समुद्री दलदल।  फिर भी रहने की समस्या भारी , जनसंख्या  हुई हैं इतनी सारी प्रदूषण ने पाँव पसारा , वाहनों की यह लम्बी कतारें। चलने की भी जगह नहीं है , शहरों की सड़कों के किनारे। व्यस्त पड़ी है सड़कें...

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जय चित्तौड़(गीत)

'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा दुश्मन जो अड़ जाए मुझसे , मिट्टी में मिला दूंगा हाँ मिट्टी में मिला दूंगा, उसे मिट्टी में मिला दूंगा 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा शहर हिला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।1 ।। आन बान की बात जो आती , जान भी दाव लगा देते x2 अपनी इज़्जत के खातिर हम, अपना शीश कटा देते X2 हम तो है भारतवासी , न रुकते है, न झुकते है x2 ऊँगली उठी अगर किसी की,  दुनिया से उठा देते x2 उसे ऐसा मजा चखाउंगा, कि सब कुछ ही भुला दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूंगा।।2।। मीरा बाई हुई जहाँ पर ,कृष्ण से इसको प्रीत लगी x2 छोड़ दिया घर बार था इसने, दुनिया से न प्रीत लगी x2 ज़हर का प्याला इसने पीया, डरी डरी सी कभी न रही x2 अंत में उससे जा मिली ,जिससे थी इसको प्रीत लगी x2 शक्ति और भक्ति की गाथा सबको मैं सुना दूंगा x2 हाँ 'जय चित्तौड़' मैं  गाऊंगा तो, सारा विश्व हिला दूं...

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar

4 Line Shayari in Hindi | By Hariram Regar ************************************************ कभी मक्की, कभी गेंहूँ, कभी है ज्वार की रोटी।  मेरी माता बनाती है, कभी पतली, कभी मोटी।  मगर क्या स्वाद आता है, भले वो जल गई थोड़ी।  नसीबों में कहाँ सब के, है माँ के हाथ की रोटी।।                                                                                                 ©Hariram Regar ************************************************ कोई नफ़रत है फैलाता, कोई बाँटे यहाँ पर प्यार।  कहानी और किस्सों से खचाखच है भरा संसार।  यहाँ कुछ लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बने फिरते।  मगर किस्से नहीं कहते जहाँ खुद ही है वो गद्दार।।               ...

हम गाँव के देसी छोरे हैं – गांव की मिट्टी से जुड़ी हिंदी कविता | By Hariram Regar

गाँव की मिट्टी का महत्व और उसकी महक भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है। चाहे हम कितने ही आधुनिक हो जाएँ, गाँव की मिट्टी की सौंधी खुशबू और वहाँ की सरलता का कोई मुकाबला नहीं है। गाँवों का जीवन, प्रकृति के साथ सामंजस्य और वहाँ के लोगों का मेहनत से भरा हुआ जीवन, हर किसी को सिखाता है कि सादगी में ही असली ख़ुशी है। हिंदी कविता, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, ग्रामीण जीवन को बहुत अच्छे से चित्रित करती है। इसी क्रम में हरिराम रेगर  द्वारा रचित कविता "हम गाँव के देसी छोरे हैं" एक ग्रामीण जीवन का अद्भुत चित्रण है। इस कविता में न केवल गाँव की संस्कृति को, बल्कि वहाँ के लोगों की मेहनत, मिट्टी के प्रति लगाव, और जीवन के प्रति उनके सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बखूबी दर्शाया गया है। यह कविता गाँव की सरलता और वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच रहने वाले लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्त करती है। हम गाँव के देसी छोरे हैं – कविता खेतों में दौड़ें पग नंगे, मिट्टी में बसती जान अपनी। बाबा के संग बैल जोते थे, सींची थी प्यार से धान अपनी। नदियाँ, बगिया, जंगल, पहाड़, हर दृश्य यहाँ स...