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असमंजस (Confusion) | Poem | By Hariram Regar

🌿 असमंजस – जब निर्णय कठिन हो

हम सबके जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जहाँ मन अनेक दिशाओं में भटकता है। निर्णय लेना आसान नहीं होता, और असमंजस की स्थिति हमें बाहरी सुंदरता और भीतरी भ्रम के बीच झुला देती है। इसी मनःस्थिति को गहराई से चित्रित करती है Hariram Regar की यह मार्मिक कविता – "असमंजस"

यह कविता केवल सुंदर शब्दों की माला नहीं है, बल्कि यह संकोच, संशय और आत्मबोध की यात्रा है। आइए पढ़ते हैं यह सुंदर और विचारोत्तेजक काव्य:


असमंजस (Confusion)

तकते रहोगे बाग को तुम ,
कब तलक तकते रहोगे ?
बीतते पल-पल दिवस,
ये फूल मुरझा जायेंगे।

मन की इन गहराइयों में
प्रश्न अगणित जाल-से ।
फूल है या भ्रम की छाया
पूछते हर डाल से।

बीतते पल गीत जैसे,
रूठ जायेंगे अगर ।
निर्णय की इस मौन बेला में
चलो अब संगधर ।

त्याग दो संकोच सारे,
संशयों को आज तुम ।
मन कहे जो सत्य बोले,
सुन लो वो अव्यक्त गुण।

अब ना तकना शेष हो यह —
पथ सुनिश्चित जान लो।
जो बसा है चित्त-गहर में,
अब उसे ही मान लो।

Composed by: Hariram Regar


🧠 कविता का मर्म – असमंजस से आत्म-निर्णय तक

इस कविता में बाग  प्रतीक है उन आकर्षक विकल्पों का, जिन्हें हम केवल निहारते रहते हैं लेकिन अपनाने का साहस नहीं करते। फूलों का मुरझाना  समय की चेतावनी है — अवसर हमेशा हमारे लिए नहीं रुकते।

कविता की सबसे बड़ी ताक़त इसकी अंतर्मुखी दृष्टि है, जो संशयों के जाल को पहचानने और उसे त्यागने की प्रेरणा देती है।

"जो बसा है चित्त-गहर में, अब उसे ही मान लो।"

यही है इस कविता का संदेश — मन की सच्ची आवाज़ को पहचानो, और निर्णय लो।


🔖 निष्कर्ष:

"असमंजस" केवल एक मानसिक स्थिति नहीं, बल्कि एक अवसर है — जहाँ आप खुद को बेहतर समझ सकते हैं
Hariram Regar की यह रचना हमें सिखाती है कि निर्णय लेने में देरी, हमारे भावनात्मक फूलों को मुरझा सकती है।
तो अगली बार जब मन किसी बाग को तकने लगे — यह कविता याद करें।


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